कवितानज़्म
*लोग किरदार समझ लेते हैं*
अल्फ़ाज बयाँ करते हैं अहसास-ए- क़ल्ब,
लोग अश्आर समझ लेते हैं!
ज़िक्र-ए-जफ़ा-ए-हबीब जब करते हैं हम,
लोग हमारा प्यार समझ लेते हैं!
इक अर्सा-ए-उम्र गुजारी है इंतज़ार में उनके,
लोग इसे ऐतिबार समझ लेते हैं!
जब ख़ामोशी में जज़्ब रहती है हामी हमारी,
लोग इसे इन्कार समझ लेते हैं!
गुनाहअपने दफ़्न करने ज़कात करभी डालें,
लोग इसे उपकार समझ लेते हैं!
गुज़र -बसर जैसे -तैसे हम कर लेते हैं बशर,
लोग इसे किरदार समझ लेते हैं!
डॉ.एन.आर. कस्वाँ
"बशर/१२/१०/२०२३