कविताअन्य
काश वो हसीं लम्हा आए,
एक सिंदूरी शाम तेरे साथ बिताए,
होंठ सिले, अल्फाज़ मौन हों,
आखों ही आंखों से सारे गिले शिकवे हो जाएं।
दिल की धड़कने हों या गर्म सांसों का चलना,
बैठो इतने करीब मेरे की सब एक हो जाएं।
जुल्फें तुम्हारी संवारने में मशरूफ रहूं इतना
की ना खबर हो और रात से सुबह हो जाए।
लिख कर ही बयां कर सकता हूं अपने अरमां,
बोल सकता तो ये इरादे यहीं निसार हो जाएं।
(शायतिक)