कवितानज़्म
हयात मिरी बता मुझको
हयात मिरी बता मुझको
कितना है बाक़ी सफ़र मेरा!
भटका हुआ मुसाफ़िर हूँ
मिल ही रहा नहीं है घर मेरा!
कांटों की कहानी जाने दे
बचाहै कितना रहगुज़र मेरा!
न पूछ गिनती ज़ख़्मों की
पत्थरों से भरा है डगर मेरा!
रस्ते के मोड़ों पर बिखरा
सब सामान इधर उधर मेरा!
अबऔर कितना दौड़ाएगी
ख़्याल पीरी का तो कर मेरा!
बेबस बे-दम होने लगा है
हरकदम दमहरदम बशरमेरा!
©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
१०/१०/२०२३/सरी