कवितालयबद्ध कविता
अनवरत-अविरल बहती गंगा की धारा।
गंगा लागे माथे से गंगा मां को सदा नमन हमारा।।
भागीरथी तेरे शीतल जल में जलती है ऐसी ज्वाला।
पापकर्म सारे जलकर खाली होजाता मानव मन का प्याला।।
ओमकार की ध्वनि बहती पुनीत धारा में तेरी।
अंक में बैठ तेरे अवसाद की भी कट जाती यामिनी अंधेरी।।
मानव की निर्जीव काया भी डूबना तुझी मे चाहती है।
मानव की सनातन अभिलाषा शांति तुझी से पाती है।।
हिमगिरि के गोमुख से बहती हर युग को तेरा सहारा है।
गंगा मां लेकर बहती अनंत आस्था की धारा है।।
अनवरत अविरल बहती गंगा की धारा है।
गंगा लागे माथे से गंगा मां को सदा नमन हमारा है।।
रचियता:-हेमंत।