कविताभजनलयबद्ध कवितागीत
"ताड़का-वध प्रसंग"
भोर अनुष्ठान गुरु संग करदोउ भाई।
विश्वामित्र संग लक्ष्मण ले,चले रघुराई।
कामाश्रम से शुभ नौका पर चढ़े रिपु राई।
मध्य धारा में सरिता की ध्वनि जब आई।
गुरुवर ने सरयू नदी की कथा सुनाई।
गंगा-सरयू को करके नमन आगे बढ़े रघुराई।
चलते चलते करूषा नगरी वह आई।
देख भयावह दृश्य नगरी का इच्छा हुई रघुराम की
जंगल में कैसे नगर बदला हानि पूछें हुई किस काम की।
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की।
ये रामायण है पुण्य कथा श्रीराम की।
गुरुवर विश्वामित्र ने यह रोचक कथा बताई।
सुकेतु यक्ष ने ब्रह्मा का वर पाकर कैसे बलशाली पुत्री एक जाई।
पति का बदला लेने राह चली अगस्त्य धाम की।
ऋषि के श्राप से बनी राक्षसी ताड़का नाम की।
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की।
ये रामायण है पुण्य कथा श्रीराम की।
क्रोध में लगी नष्ट करने ताड़का शुभ भूमि चारों ओर।
सुनी हो गई धरती सारी फैल गए काले वन कठोर।
ऋषि यज्ञों में राक्षसी पुत्र संग करती नित प्रहार।
राक्षसी के भय से लोकजन कर गए दूर विहार।
कौन पराजित करे राक्षसी योद्धा चाहिए कोई गुणवान।
गुरुवर विश्वामित्र इच्छा लेकर इसलिए पहुंचे थे कोशल धाम।
इच्छा बताकर दसरथ से मांगा प्रियपुत्र श्रीराम।
हरने बाधा मुनियों की यात्रा करी जनकल्याण की।
राह देखते सारे रघुकुल शिरोमणि श्रीराम की।
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की।
ये रामायण है पुण्य कथा श्रीराम की।
परीक्षा की घड़ी में संकुचाए रघुनंदन राम।
नारी की हानि सोचकर रुक गए करुणा निधान।
गुरुवर विश्वामित्र ने व्यथा हल करने का किया ततक्षण काम।
लगे करने युद्ध भयंकर कुमार लक्ष्मण राम।
मायावी ना मरती कबसे हो आई अब शाम।
एक तीर में किया ध्वस्त बढ़ी कीर्ति कोटि रघुराम की।
हुई पूर्ण शिक्षा गुरुवर से अरिंदम रघुपति राम की।
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की।
ये रामायण है पुण्य कथा श्रीराम की।
"श्रीमद् वाल्मीकि रामायण आधारित"
रचियता:- हेमंत।