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जुस्तजू - Ritesh Vishwakarma (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

जुस्तजू

  • 46
  • 2 Min Read

अक्सर हमारे साथ यही बात होती है,
जिस रोज छाता ना लें हम,
उसी रोज बरसात होती है,
दिन भर जुस्तजू में रहे हम सदा,
कमबख्त राह भी तभी मिलती है जब रात होती है,
अंधेरों में भी आगे बढ़कर अगर,
मैं मिलना चाहूं मंजिलों से तो बस।
मुश्किलों से मुलाकात होती है।।

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