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कवितानज़्म
*रहगुज़र मुकद्दर में ''बशर'' तेरे लिखा है* हाथों की लकीरों में सफ़र तेरे लिखा है, क़िस्मत में मग़र कहाँ घर तेरे लिखा है! न मंज़िल लिखी है ना मरहला लिखा है, रहगुज़र मुकद्दर में ''बशर'' तेरे लिखा है! ©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २०२३/१०/०३/सरी