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कवितानज़्म
*बाकी सफ़र* चलते रहे हैं ऐय जिंदगी मेरी तेरीही रहबरी में उम्रभर हम ! अपनी मर्जी से तय करेंगे मग़र बशर बाकी का सफ़र हम ! डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर" २०२३/१०/०२/सरी