कवितालयबद्ध कविता
अबोध कि अभिलाषा
निर्मल होना है मुझे गंगा सा
ठहराव चाहिए मुझे यमुना सा
बनना है विशाल पर्वत (हिमालय) सा
हृदय चाहिए मुझे अम्बर सा
गाेद(छांव) चाहिए मुझे पृथ्वी सी
ग्यान चाहिए मुझे केवट सा
प्रेम चाहिए मुझे सबरी सा
प्रकाश हो मुझमे सूरज सा
दानी होना है मुझे करण सा
याचक बनना है मुझे वामन सा
नीति चाहिए मुझे शकुनि सी
धर्म चाहिए मुझे कृष्ण सा
त्याग चाहिए मुझे कुन्ती सा
पुत्र बनना है मुझे सरवन सा
भक्ति चाहिए मुझे पहलाद सी
भाव चाहिए मुझे पूतना सा
तू है अन्नत बह्माण्ड सा
कर दे भविष्य गंगा सा
कर दे निर्मल गंगा सा
दे सूछ्म रूप कविता सा
मैं रहूँ अमर कविता सा
कर दे विराम कविता का
मैं रहूँ निर्मल गंगा सा..
मैं रहूँ निर्मल गंगा सा ....
राजदीप कश्यप