कवितानज़्म
*इन्सान का बस आना जाना रहता है*
इन्सान का जमाने में मुसलमान आना जाना रहता है
एक - सू टिक कर भी यहाँ कहांँ यह जमाना रहता है
जवानी में काम बंदे का केवल दौलत कमाना रहता है
पीरी में मग़र बशर कमाया हुआ सब गंवाना रहता है
सतत कामसे मशक़्क़त में मश्ग़ूल जब दीवाना रहता है
होते सब्र सुकूँ मसर्रतें हासिल कदमों में जमाना रहता है
डॉ एन आर कस्वां "बशर"
३०/०९/२०२४/सरी
यौम-ए-पीरी मुबारक