कविताअतुकांत कविता
जिंदगी की खोज
सोचा कि लिखूं कुछ जिंदगी के बारे में,
जिंदगी है क्या...
फूलों सा बिस्तर ,
काँटों सी ज़मी,
आवाज़ आई मेरे मन से
ये नहीं ये नहीं
जिंदगी ये नहीं ...
फिर सोचा जिंदगी
है क्या...
माँ का आँचल
पिता का साया
फिर आवाज़ आई मेरे मन से
ये नहीं ये नहीं
जिंदगी ये नहीं...
फिर सुना मैंने अन्तरमन को
जिंदगी है जानना अन्तरमन को
जिंदगी है जानना अन्तरमन को !
राजदीप कश्यप