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कवितानज़्म
*यादों की क़िताब बन कर रह गई है* जिंदगी यादों की क़िताब बन कर रह गई है हयात क़ज़ा की मोहताज बनकर रह गई है डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" १९/०९/२०२३