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कवितानज़्म
कुछ हैं वतन में फिजूल की बसी हुई आबादी लोग बोली भाषा मज़हब की दुहाई देनेके ये आदी लोग खुशबू-ए-सबा-ए-चमन में बेसबब गंद घोलने वाले खुद अपनी ही चाहने वाले हैं बशर ये बर्बादी लोग @"बशर"