Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
छल - DIPAK VANKAR (Sahitya Arpan)

कवितागजल

छल

  • 353
  • 2 Min Read

कितना दिलकश छल है यारो
आने वाला कल है यारो।
हर जानिब उसका ही जलवा,
फिर भी वो ओझल है यारो।
सदियों से मैं ढूधू उसको,
मिलना तो एक पल है यारो।
कैसे बाहर निकले ख़ुद से,
आलम तो दल दल है यारो।
हैरत में है सन्नाटा भी,
कैसा कोलाहल है यारो।
आहट,बैचेनी,घबराहट
उसकी ही अटकल है यारो।
घर, मन या मंदिर में जलता,
"दीपक" तो मंगल है यारो।

दीपककुमार "दीपक"

IMG_20230426_190507_1694595951.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg