कवितागजल
कितना दिलकश छल है यारो
आने वाला कल है यारो।
हर जानिब उसका ही जलवा,
फिर भी वो ओझल है यारो।
सदियों से मैं ढूधू उसको,
मिलना तो एक पल है यारो।
कैसे बाहर निकले ख़ुद से,
आलम तो दल दल है यारो।
हैरत में है सन्नाटा भी,
कैसा कोलाहल है यारो।
आहट,बैचेनी,घबराहट
उसकी ही अटकल है यारो।
घर, मन या मंदिर में जलता,
"दीपक" तो मंगल है यारो।
दीपककुमार "दीपक"