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कवितानज़्म
सफ़र हुआ मुक़म्मल ख़त्म रहगुज़र कहाँ जाएं घर से निकल कर हो गए हैं दरबदर कहाँ जाएं नहीं है ठिकाना कोई बशर आख़िर कहाँ जाएं हम हैं मंज़िल से लौटे हुए मुसाफ़िर कहाँ जाएं #बशर