कवितानज़्म
दिन ढल रहा है
उसे ढलने दीजिए!
दिल अपना बशर
यूं छोटा ना कीजिए!
जो बदल रहा है
उसे बदलने दीजिए!
वक़्त को अपनी
चाल चलने दीजिए!
वक़्त छलावा है
इसे छलने दीजिए!
परिंदे बड़े हो गए
पर निकलने दीजिए!
उड़ने को मचलेंगे
इन्हें उछलने दीजिए!
फ़लक खाल है
इनको उड़ने दीजिए!
यहींपे लौट आएंगे
सांझ ढ़लने दीजिए!
डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"
२०२३/०९/१०