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कवितानज़्म
*विस्मित विषधर सकल भुजंग* खुद ही बनकर विकराल व्याल मनुज डसने लगा है आप आज अपने ही अंग प्रत्यंग सर्प-द्वीप के भी डरकर रहने लगे हैं बशर अबतो चकित विस्मित विषधर सकल भुजंग ©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २१/०९/२०२३