कवितानज़्म
कभी जो तन्हा बैठेंगे तो एक-दूसरे को साथ पाएंगे,
क्या क्या बीता जिंदगी में दोनों मिलकर बताएंगे,
एक दौर था जो हमने आपस की कमियां बताने में बिता दिया,
इस दौर में हम सिर्फ खामोशियों में छिपा प्यार जताएंगे।
जब दूर-दूर तक कोई न होगा तब वहां मेरी परछाई होगी,
तुम्हें वो तमाम चीजें दिखेंगी जो तुमने कभी दुनिया से छिपाई होगी,
कोशिश कितनी भी कर लो यादों के इस तस्सवुर को भुलाने की,
ये यादें तभी मिटेंगी जब इस रूह की जिस्म से विदाई होगी।
दूरियां कहां हैं जब एक ख़्याल भर से तुम मेरी जिंदगी में शामिल हो जाते हो,
जहां बैठ कर मेरी मोहब्बत जिंदा हो जाए तुम वो साहिल हो जाते हो,
याद हैं तुम्हें बात-बात पर अपनी नाकाबिलियत बता कर दूर हो गए तुम,
जबकि मेरे नाम पर अपनी नज़रें झुका कर तुम हर दफा मेरे काबिल हो जाते हो।
-अंजना भाटी