कवितालयबद्ध कविता
"ऊंची आस"
मन चाहे हर क्षण डग मग डग मग डोले।
पाप करने को चाहे जोर जोर से बोले।
पर मन की बेड़ियों में बंधना नही होगा।
आंधी टोकेंगी अंदर,तूफान रोकेंगे बाहर।
हर कोई तूझपर ही करेगा प्रहार।
पर तूफानों के कारवें राह बदल लेंगे,आंधी भी समर्पण कर देगी।
जब तेरी आत्मा सब कुछ उस ईश्वर को अर्पण करदेगी।
धरा से ऊपर आसमान से भी ऊपर उस आस को जान।
उस आस में लगे मन की आस तो उसे सन्यास मान।
ऐसे व्यक्ति की शवासों को अनायास ही रुकना नही पड़ता।
ऐसे अरिंदम प्रभु के भक्त को दुष्टों के सामने कभी झुकना नहीं पड़ता।
रचियता:-हेमंत।