कहानीव्यंग्य
# हास्य
सब पर पानी फिर गया
परम बेचारा परिस्थितियों का मारा बापू के तानों से परेशान है।माँ है नहीँ कि सांत्वना मिले। हाँ, है बड़ा नाजुक सा,
गोरा चिट्ठा शर्मिला।आवाज़ भी पतली सी लड़कियों जैसी। बिना नौकरी चाकरी वाले को काम मिलता तो बस
गाँव में होने वाले नाटकों में
लड़की का किरदार। परचूनी की दुकान चलाने वाला पिता
पोपटलाल जल भुन कर खाक हो जाते।
परम चुपचाप से एक कॉल सेंटर पर नौकरी करने लगता है प्रिया के नाम से । उसका काम है जनानी मीठी आवाज़ में ग्राहकों से बात करना।ऐसे में उसके कई आशिक हो जाते हैं जिनमेंस्वयं उसका बापू भी है। यह क्या,बापूजी का रहन सहन बदल जाता है। एक दिन प्रिया से मुलाक़ात करने का तय होता है।फिर क्या था पोपट जी सजधज कर तैयार।बालों का क्या करे।तभी हबीब तनवीर
के शो की याद आ जाती है।
उनके अनुसार एक मिनिट में बाल काले करने हेतु सफेद लटों पर मसकारा लगा लेते हैं।
पहुँच जाते हैं प्रेमिका से मिलने।छाता लेना भूल जाने से बारिश में रंग धुल जाता है। प्रिया को ढूंढते हुए कॉल सेंटर पहुँच जाते हैं।बेटे से पूछते हैं,"वाह बेटा तुम भी अपनी माँ से मिलने आ गए।"
इतने में ही प्रिया बनी परम को कोई आशिक का फोन आ जाता है।अब बापू के सामने परम की पोल खुल् जाती है। बस अब तो परम का सर और बापू का जूता।
सरला