कविताअतुकांत कविता
*ओ साथी रे*
ओ साथी रे तुम जीवन भर
साथ निभाना,
वक़्त कैसा भी हो तुम हाथ
से हाथ ना छुड़ाना।
पल जवानी के तो कट ही
जाते हैं मदहोशी में,
तुम बढ़ती उम्र के जज्बात
समझ जाना।
परवाह नहीं ये दुनियां कितने
भी दर्द दे,
मगर तुम आँख में खुशी के
आँसू बन मुस्कुराना।
न वो दिन आये कभी के हो
बेपरवाह से तुम,
थोड़ी सी परवाह बस दिल
से तुम जताना।
सब कुछ हार कर भी जीत
जाऊंगी सब मैं,
विश्वास नज़रों में तुम जरा
सा दिखाना।
टूटने के पल आये जो कभी
ज़िंदगी मे,
मैं हूँ न कह कर हौंसला मेरा
तुम बढ़ाना।
ना छोड़ देना मुझको मेरे बुरे
हाल में तुम,
हाथ अपना मेरे कांधे से तुम
ना हटाना।
पार कर जाऊंगी मैं मुश्किल
से मुश्किल रास्ते,
बस चार कदम चल के तुम
भी साथ आना।
ना आंसू हो मेरी आँख में
तेरी बेवफाई के,
जब तक जीऊं मैं वफादार
बन तुम रहना।
नहीं कुछ मांगती हूँ तुम से
ज्यादा कुछ,
साथ गम में रोना मुस्कुराहटों
मेरी साथ हँसना।
उदासियों जो कभी में मैं घिर
जाऊं कभी,
सब कुछ ठीक हो जाएगा ये
कह सीने से लगाना।
तुम से मुझे एक ही तोहफे
की दरकार है,
प्रेम को बीच अपने सदा
बरकरार रखना।
सीमा शर्मा