कविताअतुकांत कविता
गूंज रहीं हैं सकल दिशाएं
हिन्द के जयकारे से,
भारत माँ के लाल झांक रहे
चाँद के गलियारे से।
बड़ी मुद्दतों बाद ये सुहाना
दिन है आया,
कर दिया रोशन चाँद हमने
तिरंगे के उजियारे से।
सारे जहां में हिंदुस्तान को
महान बनाया,
हर हिंदुस्तानी मन हर्षाया
इस अनुपम कारे से।
अब तक जमी देखा से करते
चमकते चाँद को,
मिला ली हैं आंखे कुदरत के
उस शाहकारे से।
घर बनाएंगे एक दिन चाँद पे
जा कर हम,
माना कि आज उतरे हैं वहां
इक बंजारे से।
अब तन्हा तन्हा सा ना होगा
चाँद आसमान में,
बाते करेंगे अब हम जा के
चाँद सितारों से।
कहानियों के चंदा मामा को
छू लिया अब हाथों से,
अब निकलेंगी नई कहानियां
दादी नानी के पिटारों से।
सीमा शर्मा