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किसी की दश्त-ब-दश्त रहगुज़र है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

किसी की दश्त-ब-दश्त रहगुज़र है

  • 88
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एक है मंज़िल सब की बशर अलग- अलग मग़र डगर है
मैदां से है, सहरा से है किसीकी दश्त-ब-दश्त रहगुज़र है

डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
२०२३/०९/०१

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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वो चांद आज आना
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