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कविताघनाक्षरी
शीर्षक - मन की आवाज इतनी मजबूर क्यो हूँ मै ? खुद से इतनी , दूर क्यो ह हूँ मै ? इतनी चूर क्यो हूँ मै ? क्या सवेरा हूँ मै ? या बसेरा हूँ मै । ये आवाज सनसनी तो नही , ये मुस्कान मेरी अपनी तो नही , महसूस हो तो , जान लूँ मै , पास आये तो , पहचान लूँ मै ।