कवितानज़्म
रंज ओ ग़म किसीको होते नहीं हैं अवसाद के बग़ैर
जंगे-बदर कहां हुई होती किसी की फ़साद के बग़ैर
क़ीमते- मसर्रत क्या समझेगा कोई नाशाद के बग़ैर
अहमियत नींदकी कौन जानेगा शबे-बर्बाद के बग़ैर
हासिल सुकून होता ही नहीं कहीं पर शाद के बग़ैर
परिंदों के पर कौन कुतरेगा ज़ालिम सैय्याद के बग़ैर
देखा नहीं ज़माने में कोहकन कोई फ़रहाद के बग़ैर
आता नहीं है बशर कभी फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
--@# "बशर"
Happy Teacher's Day