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कवितानज़्म
मसाफ़त हो गई कम खुले हुए आस्मान के रस्ते हैं आफ़त हो गई है ज़मीन पर चलो चांद पे बसते हैं ©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २६/०८/२०२३ -------------------- मसाफ़त = दूरी