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कवितानज़्म
सुकून थोड़ातो अपने लिए भी बचाकर रख बशर ज़रूरतें पुश्तों की ख़त्म नहीं हुआ करती अक्सर डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २०२३/०९/०१