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कवितानज़्म
सोचता हूँ बशर उम्रे- तमाम गुज़र गई मिरी हयात की अरमाँ ये ख्वाहिशें ये हसरतें मुंतज़िर हैं किस बात की ©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २०२३/०८/३०