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कवितानज़्म
कहने-सुनने लिखने-पढने देखने-समझने लगे सच और सपने अपने अधूरे लोग गैर-मुकम्मल टुकड़े टुकड़े हयाते-मुस्त'आर करके बसर करने लगे मन-पूरे लोग ©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २०२३/०८/२९
Imperfect गैर मुकम्मल अधूरा