कविताअतुकांत कविता
तेरा नाम ।
इश्क़ की भाषा नही लिखनी आती
हम तो हर रोज तुम्हे लिखते है
जींदगी से उल्ज़ना पसंद नही हमे
लेकिन फिर भी शब्दों के जाल मे उलझा करते है
तेरा नाम हि काफी है
मेरी मुस्कान के लिए ।
तेरा मेरे साथ होना ही काफी है
इस जिंदगी के हर दास्ता के लिए।
यदी मंजिल तुम्हे कहु तो
तुमसे मिल ने का रास्ता दिखाओगे क्या ?
यदी कहु मेरे हर सास मे तुम हि हो
तो तुम मानोगे क्या ?
हर बार तुमसे शिकायत करना तुमसे हि प्रेम करना
हमारी आदत बन चुकी है।
हम भी तुम और तुमेही हम सा कहना
ये तो एक इबादत बन चुकी है ।
इश्क़ की डोर भी पकी होती है
जब इस डोर को पक्का करने का जरिया
यदी तूम् मिल जाओ
Chhaya ade