कविताअन्य
स्नेह
स्नेह की धारा, चाहे जग सारा
बिन स्नेह के लगे ,सूना जीवन सारा.....
धरा और बादल का स्नेह जब
बीज को है मिलता......
नव अंकुरित होकर
तब एक पौधा है निकलता.....
स्नेह भरी बातों से
पवित्र हो जाता है कलुषित मन भी......
स्नेह भरी आंखों से
मिल जाती है रिश्तों को एक नई मंजिल.....
स्नेह है प्रेम,स्नेह समर्पण
स्नेह ही तो है मन का दर्पण....
दिल के बंद दरवाजे खोले
स्नेह भरे हाथों का बंधन........
स्नेह की सरिता जो बहती जाए
जीवन की सुंदर बगिया महकाए.....
हरा भरा रहे रिश्तों का उपवन
हर मन में रहे जब स्नेह का वंदन.....
भारती यादव ' मेधा '
रायपुर छत्तीसगढ़