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कवितानज़्म
ख़ामोशी से बशर हमरा जो भी किया कराया होता है तैश में आ कर अक्सर उस पर पानी फिराया होता है धनदौलत रुपयापैसा इक दिन सबकुछ जाया होता है किरदार इन्सान का ज़ीस्त में असली सरमाया होता है डॉ.एन.आर.कस्वाँ #बशर २१/०८/२०२३