कहानीव्यंग्य
ऊँट कंकड़ के नीचे
सर पर हाथ रख गम्भीर मुद्रा में, कृष्ण राय जी सोच रहे थे, आखिर क्या किया जाए ? ये हाथी जैसा बिजली का बिल, ये अजगर की तरह हिंदी साहित्य के स्थापित लेखन को निगलते सोशल मीडिया प्लेटफार्म से कैसे निपटा जाए ?
दो पैसे की लियाकत नहीं और ये आज कल के नवांकुर लेखक फुदकते ऐसे हैं जैसे लेखन में कहीं से पीएचडी कर के आए हो ।
पर करूँ तो क्या करूँ ??
मैंने भी तो जोश- जोश में अपनी फेस बुक वॉल पर कितनी बार लिखा हैं, निम्न स्तर का लेखन छापना तो दूर, मैं तो फाड़ कर रद्दी में फेंक देता हूँ ।
तभी दिमाग की बत्ती कौंधी और कुर्सी से बन्दर कि तरह छलाँग लगा कर कोने में तिरस्कृत डस्टबिन की तरफ लपके, (ये वो डिब्बा हैं जिसके लिए उन्होंने शंकर को खास हिदायत दे रखी है कि जब तक मैं ना कहूँ तुम अंदर पड़े कागज़ो (रद्दी ) को छेडोगे नहीं) ।
उलट पलट करने के बाद उन्हें उसमें से तीन पुलिंदे हाथ
लगे ।
आस के गमछे से, अपने माथे के पसीने को पौंछा और लपक कर टेलीफोन से पहला कॉल किया,"मनोज जी नमस्कार क्या शानदार लिखते हैं आप।" "क्या बताऊँ कई हफ्तों से सोच रहा था कि आपसे बात करूँ ।" "आप आए थे ना मेरे दफ्तर !!"
तभी दूसरी तरफ से मनोज ने कहा, "कृष्ण राय जी, "सबसे पहली बात, वो पांडुलिपि मेरी करीबी दोस्त की थी, जिसका आपने मजाक बनाते हुए ये कहा था कि, ऐसी रचनाओं को तो आप फाड़ कर फेंकना पसंद करते हो।"
खैर !! आपकी जानकारी के लिए बता दू, मेरी दोस्त ने अपना कहानी संग्रह स्वयं प्रकाशित कर लिया और विमोचन भी शानदार किया और मात्र दो महीनों में उसके संग्रह की पांच सौ प्रतियां बिक चुकी हैं। ये बोल कर मनोज ने फोन रख दिया ।
अपने आत्मविश्वास को संभालते हुए कृष्ण राय जी ने दूसरे लेखक को कॉल किया, वो हैलो बोलते, उससे पहले ही सामने से आवाज़ आयी, "आज आपने हमे कैसे याद कर लिया ?" "आप तो अपने मित्रो से कहते फिरते हो कि हम जैसे लोगों ने ही हिंदी भाषा के हाथ पैर सब तोड़ रखे हैं।" "आपकी जानकारी के लिए बता दूं मेरे काव्य संग्रह को सरकारी संस्थान द्वारा सम्मानित किया गया है ।"
हताश ना होते हुए तीसरे कलमकार को कॉल किया," बधाई, हो सौरभ जी, मेरे अगले लघुकथा संग्रह के लिए आपकी रचनाओं में से मैंने ग्यारह लघुकथाएं ली है । क्या कमाल का लिखते हो आप , फुरसत मिलते ही मैंने सबसे पहले आपकी लघुकथाएं पढ़ी ।
उधर से सौरभ ने कहा, " पर मैंने तो दो साल पहले आपको मेरे उपन्यास की पीडीएफ फाइल भेजी थी" बात को संभालते हुए कृष्ण राय जी ने कहा, "मैं उसकी बात नहीं कर रहा वो तो छपेगा ही ...मैंने तो आपकी वॉल से श्रेष्ठ लघुकथाएं ली है ।"
सौरभ स्तिथि को भांपते हुए बोला, "आप उपन्यास के प्रकाशन का काम शुरू करे , मैं समय निकाल कर आपसे जल्द मिलता हूँ ।" " मैंने वॉल पर तो लघुकथाएं बिना प्रूफ रीडिंग के साझा कर रखी है , मेरे हिसाब से अभी उनमें बहुत काम करना बाकी हैं ।"
कृष्ण राय जी मुस्कुराते हुए बोले,"अजी पिछले चालीस साल का अनुभव हमारा किस काम का फिर, छोटी मोटी त्रुटि संशोधन के लिए हम बैठे हैं ना !!"
कृष्ण राय जी के शब्द गले से अटकते हुए बाहर निकलने ही वाले थे तभी उन्होंने अपने शब्दो को उम्मीद के साथ निगल लिया । अब चेहरे पर संतोष के भाव थे ,"पांच हजार लघुकथा हेतु और चालीस हजार उपन्यास ..." शुक्र ईश्वर का हो गया इंतजाम ।"
स्वरचित मौलिक रचना
रूपल उपाध्याय