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कवितानज़्म
तिरे दर पर आकर हम दर -बदर हो गए तुझ से क्या मिले ख़ुद से बेख़बर हो गए आलम-ए- बे-खुदी में अब हम तो बशर उसीके जानिब उसी की रहगुज़र हो गए डॉ.एन.आर.कस्वाँ © #बशर