कविताअतुकांत कविता
औरत के जैसा
गुण किसी में नहीं
मिला इन्हें
कुदरत का
करिश्मा है
अवगुण मुझ में
ज्ञान भरा इसी ने
जिसे मैं
मां कहके
पुकारता हूं
क्या गजब की
त्याग, छमा, याचना,
ममता, प्यार, दुलार
इनमें कूट-कूट कर
समाहित होती है
इतनी बड़ी त्याग
अपना घर छोड़ना
एक पराएं
पुरुष को
सब कुछ समझना
फिर एक मासूम से
फूल को जन्म देती है,
जो आगे चलकर
एक बृच्छ का
सहारा ले लेता है
सृजन
एक पौधे के जैसा
औंरत करती है
मगर हमारे
अंधे समाज ने
इन्हें अपना
गुलाम समझता है
ना जाने कब
ये अंधविश्वास
कि दीवारें ढंहेगी
और औंरत को
उसका अधिकार
हिस्से की खुशी मिलेगी।
राजित राम रंज