कवितालयबद्ध कविता
चाहे कुल रूठे चाहे जग रूठे,पर हरि नाम न छुट्टे।
सपना है सारा जगत हरि,तेरे भजन नाम से टूटे।
तूं ही मेरा चिंतन, तू ही मेरा कीर्तन।
बस मेरी श्वास के साथ हरि ये कर्म टूटे।।
तूं ही सबका तत्व हरि,भजे तेरे नाम से मिले ये दर्शन।
बैठा रहे तूं मेरी दृष्टि में बस ये दृष्टि न छुट्टे।।
ना जग में तूं कोई बाधक,ना ही तूं कोई बाधा।
तेरे चिंतन से ये भ्रम टूटे,है ये ही ज्ञान अनूठा।।
मैं हूं मूढ़ मन,कर बैठूं कोई गलती हरि।
तो भी ये हरि नाम न छुट्टे।।
जग में ना मानू मैं,कोई भ्रम नाम की रीति।
भजूं सदा सीता रवन,मिले हरि नाम से कीर्ति।।
साधक अपने भाव से जीते,है तूं ही वो ज्ञान हरि।
यही सत्य हरि दर्शन, मैं इसे ब्रह्म ज्ञान मानू।।
तूं ही सर्व व्यापक हरि,तेरे कितने ही नाम जानूं।
तेरी ही दया से हरि, मैं हरि दर्शन बखारूं।।
शीर्षक:-हरि दर्शन।
रचियता:हेमंत।
मोबाइल No.:- 8708687165