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कवितानज़्म
हयात-ए-मुस्त'आर खुदमें इक छोटासा सफ़र है शुमार जरूरतों में आदमी के इक बड़ा-सा घर है #बशर डॉ एन आर कस्वां सरी: ०१/०८/२०२३