कवितानज़्म
ऐसे भी मुसाफ़िर हैं जिनकी रहगुज़र कहीं शजर नहीं आता
इब्तिदा -ए -सफ़र सफ़र होता है इंतेहा- ए- सफ़र नहीं आता
बस्तियां आती हैं गुज़र जाती हैं मग़र बशर दौराने-राहे-सफ़र
इन यायावर फकीरों के मुकद्दर में कभी कहीं घर नहीं आता
©️✍️ बशर
Dr.N.R.Kaswan
Surrey:23/07/2023