Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
खुशबुएं नदारद बशर - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

खुशबुएं नदारद बशर

  • 103
  • 2 Min Read

दोस्ती के लिबास पर
लगे हुए पैबंद हैं!
दो - चार बार ही नहीं
हर- सू हर-चंद हैं!
वस्लो-मुलाक़ात सिर्फ़
कहनेके दंदफंद हैं!
भाई से भाई की यहाँ
बातचीत ही बंद है!
जिन्दगी को जीने का
खो गया आनन्द है!
सूखा हुआसा है चमन
बचा नहीं मकरंद है!
खुशबुएं नदारद बशर
नफरतों की दुर्गंध है!

©️✍️ बशर
Dr.N.R.Kaswan
Surrey:22/07/2023

IMG-20230618-WA0008_1690076425.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg