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खुशबुएं नदारद बशर - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

खुशबुएं नदारद बशर

  • 110
  • 2 Min Read

दोस्ती के लिबास पर
लगे हुए पैबंद हैं!
दो - चार बार ही नहीं
हर- सू हर-चंद हैं!
वस्लो-मुलाक़ात सिर्फ़
कहनेके दंदफंद हैं!
भाई से भाई की यहाँ
बातचीत ही बंद है!
जिन्दगी को जीने का
खो गया आनन्द है!
सूखा हुआसा है चमन
बचा नहीं मकरंद है!
खुशबुएं नदारद बशर
नफरतों की दुर्गंध है!

©️✍️ बशर
Dr.N.R.Kaswan
Surrey:22/07/2023

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