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एक नए सवेरे की किताब  ( एक ज़िद्द एक जीत ) - Himanshu Joshi (Sahitya Arpan)

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एक नए सवेरे की किताब  ( एक ज़िद्द एक जीत )

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एक नए सवेरे की किताब ( एक ज़िद्द एक जीत )

एक छोटे से जिले का एक छोटा सा गांव जो बसा था एक हसीन वादियों के बीच एक ऐसी जगह जहां होना ही अपने आप में सुकून देता  ! 

जहां का हर जर्रा जर्रा जैसे हमे अपनी और खींच रहा हो..

वहां था एक सफर सुहाना और उस सफर में एक हैं साधारण परिवार के दो  साधारण लड़के जो खुश थे अपने आप से ! खुश  थे उस साथ के माहौल से .

ऐसा कोई दिन ना था जहां खुशियों का आना ना था ।

वो शाम , वो रात  , वो  दोपहरी का भात ..

हर जगह मौजूद .था  सब का साथ 

दिन भर पहाड़ों में घूमना खेलना और रात में सब का मिल जाना.. मिलकर सब का भोजन करना वो भी क्या दिन था

सुबह उठते ही स्कूल जाना जाने से पहले 

दूध के साथ रोटियां खाना फिर स्कूल से आके मां के हाथ में हाथ डाल  कर खेतो में जाना ।

जिंदगी का सफर सुहाना था इस कदर की !  हर दर्द भी बन जाता था खुशी का सफर ।

साथ था पापा का उसके पास ...साथ था  जिंदगी का उसके पास ।

नादान से सफर में था एक लड़का जहां उसका सफर हसीन था जहां हर नादानियां हर किसी को पसंद आती  । 

चाहे कोई भी चीज फ्री ना   हो जिस पर उनका जाना ना हो !

खुशी का माहौल था एक यादगार सफ़र था . हर कण कण में दर्द भी था और  उससे लड़ने में मजा भी था ।

फिर आई एक रात  ऐसी जो सफर में ही अपने आप में ही बहुत बड़ी कहानी लिखने जा रहा था ।

वो  दो लड़के उस कहानियों के और उस अंधेरी रात के

मुख्य कलाकार बन गए थे ।

जहां उसके बाद हर सवेरा एक काली रातों को याद दिलाती थी

वो रात भर सब के दर्द में रहना .. वो पल बहुत डरावना था

दिन था वो शनिवार समय था  वो रात का चार और साथ में था उस लड़के का जन्मवार ।

वो दिन ही ले गया उस  सारी खुशियों की  बौछार जहां सोचे थे उसने अपने सपने  हजार 

वो लड़का आज भी याद करके रोता था । क्यों किया उस खुदा ने ऐसा जो प्यारा था उसी को ले जाता था ....

एक छोटी सी बात थी जिसके लिए आधी जिंदगी बर्बाद थी ।कैसे भूले वो लड़का उस रात को जिस उसने उसी के किताबों से याद की ।

उसके बाद हर सफर गया ऐसा उस लड़के का जैसे हर सवेरा उस रात की कहानी थी...

डरता नहीं था वो अपने आप से डरने लग गया था वो इस बुरी समाज से..

क्यों की उस बुरे दौर में समाज ने उसे जोड़ा नही था ..

उसे तोडने में जुड़ गया था ये समाज .. 

फिर भी वो डरा नहीं लड़ते रहा अपने किस्मत से दिन रातों तक .. आगे रास्ते बनाते रहा

दिन कट रहे थे वो चल रहे थे , चलते जा थे  इस सफर में..

याद करता रहा वो उस सफर को.. उम्र नहीं थी उस के बड़ी उसकी  छोटा सी उम्र से शुरू हुआ ये बुरा सफर था..।

अपने दर्द में ही इतना डूबा था वो की अपनो के दर्द से वो अनजान था ।

" उसकी किस्मत ने उसके साथ खेला ऐसा खेल । 

 की वो  खुद को कर बैठा जेल

 जहां पास होके भी हो गया वो फेल " ।

फिर सवेरा अगले दिन का एक नई कहानी थी

कई दर्द आए हजार फिर भी उन दो लड़कों ने ऐसा माना था ऐसा जाना  था ।

रो लेंगे मन ही मन में लेकिन  इस दर्द से परिवार को निकालना था...

की मेहनत और दर्द लिए हज़ार उसमें उस अकेले उसके भाई ने

लड़ना था उस समाज से लड़ना था अपने आप से.. लड़ा ऐसे जैसे कोई दर्द न था उसके सीने में ।

रो लेता था वो अंधेरी  रातों में अकेले में फिर भी पता नहीं चलने दिया उसने अपने परिवार में ! उस समाज में ।

" एक साथ था , एक ख्वाब था फिर भी वो अनजान थे 

कैसे गुजरी वो राते उनकी वो ही जाने जो खुद एक कोरे किताब थे ...

जो अब बंद किताबों में एक ख्वाब है " .।

कहीं इस सफर में ऐसी राते आई जो हर किसी दिनों में एक  प्रश्न का उत्तर दे जाता था ।

सहारा था मुझे एक राजकुमारी का इस बुरे दौर में।

जिसने उसे जिंदगी के अंधेरों से लड़ना और जीना सिखा दिया था ।

उस राजकुमारी का मिलना और जिंदगी में आना उसे बुरे दौर में उसे अलग ही सुकून देता था । 


धीरे धीरे कदम चलते रहे अब वो लड़के रुके नहीं

" एक गुमनाम जिन्दगी से एक ऐसा नाम बनाया जो अब उस गांव में बुरे दौर से खुशी तक की सफर तक की एक  पहचान हैं "

" बुरा समय था और सफर बुरा था जो चल रहा था वहीं अपना था " ।

" जो जा रहा था और जो आ रहा था बस उसकी यहीं कहानी थी आना और जाना जैसे उसकी ही जवानी थी "।

फिर भी साथ न छूटा उसका उस बुरे दौर से  

" जब ज़िंदगी हैं खूबसूरत सी जहां खुशियों का न ठिकाना था 

ये वक्त ने फिर कभी - कभी उस दर्द को बुलाना था ।

कहीं ना कहीं इसने अब जिन्दगी को मजबूत बनाना था ।

वक्त ने वक्त को सिखा दिया अब यही तो बताना था "


छूट गया था गांव उसका जहां रहना उसका सपना था एक नया शहर नए लोग और उस नए शहर में एक नए सफर में आया एक साधारण लड़का जो खोया रहता था अपने आप में

" जब देखी उसने दुनिया तब पड़ा वो सोच में आसान नहीं होगा  अब सफर जिंदगी का इस लड़ती समाज की होड़ में "।

छूट गया था हमसफर से एक वर्ष उसका  साथ फिर भी नहीं टूटा था दिल से था उसका साथ फिर मिले वो एक वर्ष  बाद एक नई सफर के साथ ।

जिंदगी चल ते रही चलते रही उसके बाद होली हो या दिवाली मिलकर सब मनाई

सफर नहीं रहा आसान आगे भी आगे कहीं सफर आने अभी बाकी है..

जो जी रहे हैं वो तो बस शुरुवात हैं अभी तो  और खुशियां आनी बाकी हैं..

सफर चलता रहा आगे.! जो नए शहर में वो आया था जहां वो रहता था वो आस पास ही बहुत प्यारा था

जिन्दगी चल रही हैं और हम भाग रहे हैं जिंदगी चल ते रही... .

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दादी की परी
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