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कवितानज़्म
कारवां-ए-हयात रहा कुछ बेज़ार मिरा मील के पत्थरों को रहा इंतज़ार मिरा मंज़िल को न रहा यकीं सफ़र पर मेरे रहगुज़र से दूर ही रहा घर -बार मिरा ©️✍️ #बशर Dr.N.R.Kaswan Surrey:12/72023