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बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया

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इक मुसाफ़िर ये जबसे आकर तेरे शहर में बस गया
येह शहर तबसे आकर मेरे जाँ-ओ-ज़ेह्न में बस गया

मआल-ए-सफ़र हैजान-ए-तलाश-ए-सुकूँ येह बशर
ज़ेरे -असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया

©️✍️ #बशर
Dr.N.R.Kaswan
Surrey:17/7/2023

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