कवितागजल
पता नहीं पिन्हा कब हुआ मुझमें
इस तरह कोई जज़्ब हुआ मुझमें!
अहसास-ए- विसाल तो था मग़र
हिज्र का मलाल अब हुआ मुझमें!
सब्र ना रहा, करार ना रहा बशर
उनका इंतज़ार जब हुआ मुझमें!
वादा-ए-वस्ल भुला के चलते हुए
यादोंका आभास तबहुआ मुझमें!
©️✍️ #बशर
Dr.N.R.Kaswan
Surrey:10/7/2023