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माना कि मश्ग़ूल हो तुम - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

माना कि मश्ग़ूल हो तुम

  • 88
  • 2 Min Read

माना कि मश्ग़ूल हो तुम
घर किसी को नहीं मिलते!
हमभी अक्सर मग़र बशर
हर किसी को नहीं मिलते!
तुम चाहोतो मिल सकते हैं
मग़र बुला कर नहीं मिलते!
चाहे जिसे मिल सकते हैं
किसी शर्त पर नहीं मिलते!
निहायत जरूरी है मिलना
भटक दर- दर नहीं मिलते!
जगह मुकर्रर करके मिलो
हम हर जगह नहीं मिलते!
©️✍️ #बशर
Dr.N.R.Kaswan
Surrey:10/7/2023

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