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साइकिल - Madhav (Sahitya Arpan)

लेखनिबन्ध

साइकिल

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साइकिल
मुझे जब SAHITYA ARPAN ई पत्रिका के बारे मे ता चला तो सोचा इसमे कुछ लिखा जाए। मै इस ऊहापोह मै था किस विषय पर लिखू तभी सोशल मीडिया पर साइकिल डे के बारे मे पता चला जो कि 3 जून को आता है। तो फाइनल इसी विषय पर लिखने का तय हुआ। आगे हम साइकिल और पर्यावरण से संबंधित कुछ बात करेंगे।


तकनीक आधारित वाहनों की मौजूदा दौड़ में साधारण साइकिलें एक बार फिर आवागमन और पर्यावरण के संरक्षण का प्रमुख साधन बन सकती हैं।
पर्यावरण संरक्षण में नागरिकों के व्यक्तिगत प्रयासों की अहम भूमिका है। इसी नागरिक केंद्रित पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अतिमहत्वपूर्ण अभियान मिशन लाइफ की शुरुआत की है। इसके मिशन दस्तावेज में स्पष्ट किया गया है कि नागरिकों को ‘स्थानीय और छोटी दूरियों के लिए साइकिल का इस्तेमाल’ करना चाहिए। साइकिल पर्यावरण के लिए सबसे अनुकूल आवागमन का साधन है। साइकिल, भारत की एक बड़ी आबादी, खास तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दैनिक कामकाज तक पहुंचने में मदद करती है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, करीब 1.5 करोड़ शहरी भारतीय अपने कार्यस्थल तक जाने-आने के लिए साइकिल को दैनिक साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। शहरी भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली यह संख्या यूनान, बेल्जियम और पुर्तगाल जैसे किसी भी एक देश की कुल आबादी से कहीं ज्यादा है। ग्रामीण भारत में आवागमन के लिए साइकिल का इस्तेमाल तो और भी ज्यादा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5, 2020 के अनुसार, भारत के ग्रामीण और शहरी परिवारों में से 55 फीसदी के पास साइकिल है।
मोटर वाहनों की संख्या, लोगों की आमदनी और लंबी दूरी के सफर में बढ़ोतरी होने के साथ साइकिल के इस्तेमाल में गिरावट आई है। विभिन्न अध्ययन व विशेषज्ञ ‘सड़क दुर्घटना के जोखिम’ को देश में साइकिल के इस्तेमाल में बाधा डालने वाली प्रमुख चिंता मानते हैं। ऐसे में सवाल उभरता है कि साइकिल चलाने वाली मौजूदा आबादी को इससे जोड़े रखने और अन्य लोगों के बीच साइकिल के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारें क्या-क्या कर सकती हैं? इसके लिए मिशन लाइफ में दिए गए व्यवहार परिवर्तन के तीन चरणों-मांग में परिवर्तन, आपूर्ति में बदलाव और नीतियों में तब्दीली, में से प्रत्येक के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं
मांग में परिवर्तन: साइकिल को रोजमर्रा के आवागमन के साधन के रूप में बढ़ावा देना चाहिए। सरकारी कार्यालयों, कॉरपोरेट्स और शैक्षणिक संस्थान सप्ताह में एक या दो बार साइकिल से आने-जाने, विशेष रूप से पांच किमी तक की दूरी के लिए, की पहल करके महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आपूर्ति में बदलाव: विभिन्न शहरों को साइकिल चलाने वालों की सुरक्षा के लिए बुनियादी ढांचे में तेजी से होने वाले छोटे-छोटे बदलावों को लागू करना चाहिए। बंगलूरू की पॉप-अप साइकिल लेन और मैसूर की पब्लिक बाइक-शेयरिंग योजना जैसे नए प्रयोगों के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है। भीड़भाड़ वाले इलाकों, ऐतिहासिक विरासत वाली जगहों, पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों और शैक्षणिक संस्थानों में ‘केवल पैदल चलने व साइकिल चलाने’ की सड़कें बनाने पर ध्यान देना चाहिए।
नीतियों में तब्दीली: सभी शहरों में साइकिल चलाने के लिए बुनियादी ढांचे का एक व्यापक नेटवर्क बनाना चाहिए। इसके लिए शहर के स्तर पर कार्य योजनाओं के निर्माण, उपयुक्त तकनीकी क्षमता विकास और बुनियादी ढांचे को तैयार करने के लिए विभिन्न संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंपने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। हालांकि, इस चरण में बुनियादी ढांचे के विकास और उसके रख-रखाव के लिए दीर्घकालिक वित्तीय संसाधनों को जुटाना सबसे महत्वपूर्ण काम होगा। इसके लिए कर्नाटक की तर्ज पर केएनएमटीए जैसी सोसाइटी बनाई जा सकती है। तकनीक आधारित आवागमन के साधनों की मौजूदा दौड़ में दो टायरों वाली साधारण साइकिलें एक बार फिर से जनता के आवागमन और पर्यावरण के संरक्षण का प्रमुख साधन बनकर उभरेंगी।









माधव
शिक्षा संकाय
मोहनलाल सुखाङिया विश्वविद्यालय
उदयपुर

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