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मुंह जितनी बात - Rakesh Saxena (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मुंह जितनी बात

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मुंह जितनी बात

क्या आप जानते हैं?
आप अपनों से कट रहे हैं!
कई भागों में बंट रहे हैं!
ऑंखों को खटक रहे हैं!
व्यवहार से भटक रहे हैं!

हां, आपने सही समझा।
आप समय संग चल रहे हैं,
हारने वालों को खल रहे हैं,
अपनी मेहनत से फल रहे हैं,
इसलिए समझो बदल रहे हैं।।

ठहरो, ये गलती मत करना।
अपने सपने मत बदलना,
समस्याओं से मत डरना,
तानों की परवाह मत करना,
मरने से पहले मत मरना।।

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