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दास्तां ए दिल - Rakesh Saxena (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

दास्तां ए दिल

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दास्तां ए दिल

दर्द ए ज़िगर अहसास,
याद उसकी ताज़ा हुई।
ऑंखों में सैलाब आया,
प्यार निश्छल वज़ा हुई।।

हद की भी हदें पार की,
दिल में ना बसा सका।
नसीब में वो थी ही नहीं,
खु:द को ना समझा सका।।

ताउम्र गुज़ारी इंतज़ार में,
हर क्षण घुटता-मरता रहा।
वो बेमुरब्बत बेरुख ही रही,
मैं प्यार का दम भरता रहा।।

आखिरकार देहत्याग कब्र में,
सब भुला निश्चिंत सोया था।
वो ऑंसू बहाने कब्र पर आई,
पछता कर दिल ख़ूब रोया था।।

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