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कविताअन्य
टल गये अब संकट सारे कुछ दिनों की बात थी दो कौड़ी के बंदे जैसी मेरी भी औकात थी मेरे जीवन के ये सारे प्यारे से गीत बड़े बड़े ज्ञानियों ने कहा मन के जीतें जीत बचपन वाला एक रुपया अब भी मुझको याद है पाया है जो भी मैंने शिव का प्रसाद है