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क्षत्रिय धर्म ?? - Ritin Pundir (Sahitya Arpan)

लेखअन्य

क्षत्रिय धर्म ??

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श्री कृष्ण कहते हैं, हे अर्जुन -तू धर्म युक्त संग्राम को नही करेगा,तो स्वधर्म व कीर्ति को त्याग कर पाप को प्राप्त होगा,इनसे जाना जाता हैं कि क्षत्रियों का अपना धर्म था।।और उसके मूल्य (आदर्शो) पर चलना उनका कर्तव्य था।।क्षात्र धर्म के कर्तव्य का वर्णन वेदों,स्मृतियों,महाभारत गीता आदि ग्रंथों मैं मिलता हैं।।वेदों मैं क्षत्रिय गुणों को प्राप्त करने की जगह 2 स्तुत की गईं हैं।।।।

हम क्षत्रिय जाती मैं उत्पन तथा समस्त मनुष्यो के राजा हैं हमारे दो प्रकार दो तरह के राष्ट्र हैं जिस प्रकार समस्त देवता हमारे हैं उसी प्रकार मनुष्य भी हमारे हैं हमारे सौन्दर्यवान तथा समीपस्थ वरुण हैं | समस्त देवता हमारे यज्ञ की परिचर्चा करते हैं हम मनुष्य के भी शाशक हैं

महाभारत मैं द्रोपदी युधिष्टर से कहती हैं जो क्षत्रिय समय आने पर अपने तेज को प्रकट नही करता,उसका सब प्राणी सदा तिरस्कार करते हैं ।।

मार्कण्डय पुराण मैं क्षत्रिय के कर्म इस प्रकार बताए गए हैं।।
अपने राजकुल बनाते बलवान बनाते हुए क्षत्रिय का जरायु दे।।राज्य के निमित प्रबंधकर्ता के नाते सूर्य के समान तेजस्वी कार्यकर्ता बने,मित्र का मित्र बने,
वरुण के समान श्रेष्ठ बनकर शत्रुओं का विनाश करे,सत्य का उपदेश करे। वीर बनकर शत्रुओं का संहार करे।प्रजा को भी चाइए की ऐसे राजा की सब प्रकार से रक्षा करे।।

1-नियमो का पालन करना(मर्यादित जीवन)
2-यज्ञ करना(क्षत्रिय धर्म बहुत जरूरी)
3-शत्रु का दमन कर बहरी आक्रमणो से देश की रक्षा करना।।
4-धैर्यवान
5-युद्ध से पलायन न करना
6-युद्ध कला मैं प्रवीणता
7-राष्ट्र के प्रति भक्ति
8-शाशन करना
9-पीड़ित जनों की रक्षा करना
10-शौर्य एवं तेज युक्त होना
11-दक्षता
12-दानी व त्यागी
13-सत्य संभाषण
14-प्रजा मैं ईश्वरीय भाव रखना
15-शरणागत की रक्षा करना
16-प्रतिज्ञा का पालन करना
17-धर्म की रक्षा करना
18-धार्मिक बने रहना
19-काछ का सच्चा
20-ज्ञान पिपासु
ओर
21-वैराग्य (अंतिम समय मैं ईश्वर को समर्पित कर भजन करना)

जो क्षत्रिय-धर्म के विपरीत आचरण करते हैं वे मर्यादित क्षत्रिय नही हैं।।

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