कविताअतुकांत कविताबाल कविता
जीवन का सत्य
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कली हु में,
फूल बन कर खिले जाऊंगी..
दुनिया भर में अपनी खुशबू फैलाके,
एक दिन मुराजाऊंगी...
पेड़ हु में ,
छोटा सा...
एक दिन बड़ा हो जाऊंगा....
छोटे बड़े , खट्टे मीठे फल दूंगा,
धूप में छाऊ,
घर नाउ बनाने के लिए लकड़ी दूंगा...
पकवान बनाने के लिए पत्ता दूंगा...
ऊपर से नीचे तक सब कुछ देके एक दिन खत्म हो जाऊंगा...
हवा हु में,
छूके बेह जाऊंगा...
ठंडी ठंडी एहसास के साथ तेरे रुहू को छू जाऊंगा...
धूप हु में,
दिन में ताजगी देके,
शाम होते ही पश्चिम दिशा में छुप जाऊंगा...
रात हु में,
चांद की रोशनी के साथ तारो की चमचमाहट से
आसमान को सजाऊंगा
सुबह होते ही एक बार फिर से बादल के पीछे छुप जाऊंगा....
सपना हूं किसके मन का,
असमानो में उड़ने की है तमन्ना...
पूरी करनी है हर एक सपना,
मुजबुद है हर एक इरादा...
आत्मा हु में,
शरीर के अंदर रहती हूं...
कभी हस्ती हु तो कभी रोती हु!!!
सब कुछ सेहेके भी अंदर रहती हूं...
चोट लगे तो चुप रहती हु,
कोई कुछ बोले तो सुन लेती हु...
मजबूर हु!!!
चाहूं भी तो शरीर से निकल ना सकू...
समय से पहले निकल ना पाऊंगी,
समय होते ही निकल के अंतर आत्मा के साथ बिलिन हो जाऊंगी....
ये तो जीवन है,
कब क्या केसे क्यों हो जायेगा किसीको पता भी नहीं चलेगा...
फिर भी जीना होगा,
खुशी हो या गम सेहेना पड़ेगा,
सब कुछ साथ लिए आगे बढ़ना पड़ेगा,
इस जीवन को जीना पड़ेगा...
करिश्मा त्रिपाठी